After sambhaji maharaj Story of maharashtra
11 march 1689 को औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज की बड़ी क्रूरता से हत्या करदी, इस हत्या के बाद पूरे दक्खन में जैसे आंधी आ गयी
इस दर्दनाक घटना के बाद भी अगले दिन राजाराम महाराज को स्वराज्य का तीसरा छत्रपति बनाया गया, ये फैसला महारानी yeubai का था.
मुग़ल सेना स्वराज्य पे चारो और से हमला कर रही थी,स्वराज्य का एक एक किला मुघलो के हाथ लग रहा था,
सिर्फ 12 दिनों में जुल्फिकार खान ने रायगढ़ को पूरी तरह से घेर लिया, मराठो के सभी राजसदस्य और मराठो की राजधानी रायगढ़ को हथियाने का जूनून औरंगजेब की दिलोदिमाग पे छाया हुआ था. आदिलशाही और कुतुबशाही के साथ साथ अब मराठो को भी जड़ से खत्म करने का फैसला औरंगजेब के था.
Chatrapati rajaram raje
इतने कठिन हालातोमे सभी राजसदस्य एक ही जगह पर रहेंगे तो सभी पकड़े जा सकते है, इसीलिए छत्रपति राजाराम महाराज अलग अलग किलो पे जाके मुघलो से संघर्ष करेंगे ,ये तय हुआ
छत्रपति राजाराम महाराज रायगढ़ से प्रतापगढ़, प्रतापगढ़ से सज्जनगढ़, सतारा,वसंतगड और पन्हाला पे पोहुँचे. वो जहा जहा जा रहे थे वहां मुग़ल उनके पीछे आ रहे थे, जल्दही मुघलो ने पन्हाला को घेर लिया
छत्रपति राजाराम महाराज ने अपने कुछ मौजूदा साथियो के साथ जिंजी जानेका फैसला कर लिया
26 सितंबर 1689 को छत्रपति राजाराम महाराज भेस बदलकर, अपने कुछ साथियों के साथ मुघलो के घेरे से बाहर निकल गए . उनके साथी मानसिंग मोरे, प्रल्हाद निराजी, कृष्णाजी अनंत, नीलो मोरेश्वर,खंडो बल्लाळ, बाजी कदम उनका जैसे सुरक्षा कवच बनके चल रहे थे
छत्रपति राजाराम महाराज जिंजी जाने वाले है ये औरंगजेब को मालूम था ,इसीलिए उसने रास्ते के सभी किलेदारो को पहले ही सावधान करके रखा था, राजा समंदर से जा सकता है इसीलिए औरंगजेब ने उसवक्त के goa के पोर्तुगीज वोइसरॉय को सतर्क रहने का इशारा दिया था
पर छत्रपति राजाराम महाराज ने अपने महान पिता का गनिमी कावा अपनाया, उन्होंने पन्हाला से दक्षिण की और न जाते हुए पूर्व दिशा में जाना शुरू किया, और इस प्रकार उन्होंने 2 बार कृष्णा नदी को पार करके अपनी दिशा फिरसे बदली और गोकाक-सौंदत्ती-नवलगुंद-अनेगरी-लक्ष्मीश्वर-हावेरी-हिरेकेरूर-शिमोगा इस रास्ते से जिंजी पोहुँचे, जैसे ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने आगरे से भागने के बाद दक्षिण की और न जाते हुए पहले पश्चिम फिर पूर्व फिर दक्षिण की और गए वैसेही छत्रपति राजाराम महाराज ने औरंगजेब को चकमा दे दिया
रास्ते मे छत्रपति राजाराम महाराज ने बहिरजी घोरपड़े, मालोजी घोरपड़े, संतजी जगताप, और रूपजी भोसले जैसे बहादुर मावलों को पहलेसेही तैनात करके रखा था, वो रास्ते मे छत्रपति राजाराम महाराज से मिलते गए और धीरे धीरे करके उनकी सेना बढ़ती गयी
पर अचानक वरदा नदी के किनारे उनका सामना मुघलो से हुआ, छत्रपति राजाराम महाराज को छू पाना मुग़ल सेना के लिए मुमकिन नही हो पाया क्योंकि उनके आगे संताजी और पीछे रूपाजी जैसे शुर योद्धा थे. ऐसा कहा जाता है कि संताजी और रूपाजी घोरपड़े इतने माहिर योद्धा थे कि उनके 10 मीटर करीब कोईभी शत्रु जिंदा रह नही पता था.
छत्रपति राजाराम महाराज ने ऐसेही लड़ते लड़ते वरदा नदी पर करली और तुंगभद्रा नदी के किनारे पोहुँचे
रास्ते मे बिदनुर की रानी चन्नामा ने छत्रपति राजाराम महाराज की मदद की, क्योंकि कुछ सालों पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी उनके राज्य को मुघलो से बचाया था. पर इस बात से औरंगजेब को गुस्सा आया और उसने बिदनुर पर हमला बोल दिया
अब फिरसे संताजी ने मुघलो पर आक्रमण करके मुग़ल सेना को कड़ा जवाब दिया. छत्रपति राजाराम महाराज तुंगभद्रा नदी के किनारे रुके ,उस वक्त उनपे विजापुर के सुभेदार सय्यद अब्दुल्ला खान ने रात में हमला बोल दिया, औरंगजेब ने उसे 3 दिन 3 रात के बिना रुके राजा को पकड़ने भेजा था. अपने राजा को बचाने केलिए मराठा खूब लाधे और बोहोतसे मारे गए
आखिरकार राजाराम महाराज को पकड़ा गया, ये बात समझते ही सय्यद अब्दुल्ला खान खुश हुआ और उसने औरंगजेब को खबर भेज जी, कुछ वक्त बाद समझा कि वो छत्रपति राजाराम महाराज नही है उनके भेस में कोई और मराठा है.सिद्धि जोहर के घेरे में जब शिवा काशिद ने छत्रपति शिवाजी महाराज का भेस लिया था, वैसेही आज इस अनामिक मराठे ने छत्रपति राजाराम का भेस लिया और राजा के लिए अपनी जान गवादि
शिमोगा से आगे छत्रपति राजाराम महाराज ने बोहोतसे भेस बदलकर आखिरकार उधरसे 170 मैल दूर बंगलूर पोहुँचे. बंगलोर में छत्रपति राजाराम महाराज पे और एक हमला हुआ. छत्रपति राजाराम महाराज के पैर कोई सेवक धो रहा है ये कुछ लोगो ने देखा और ये कोई बड़ी शख्शियत है इसीलिए मुग़ल सेना को इस बात के बारेमे बताया
पर सही वक्त पे खंडो बल्लाळ ने मुग़ल सैनिको को मार गिराया. बंगलूर से 65 मेल दूर अम्बुर में मराठाओ की छावनी थी वह पे बाजी काकड़े नामक मराठा सरदार था.महाराज की खबर मिलतेहि उसने तुरंत छत्रपति राजाराम महाराज को सुरक्षा दे दी. अब महाराज अम्बुर से सेना लेके वेल्लूर की और चल पड़े थे 28 अक्टूबर 1689 को महाराज वेल्लूर पोहचे
जिंजी का किला छत्रपति शिवाजी महाराज ने पहलेसेही मराठो के लिए ऐसी परिस्थितियों में राजा को आश्रय देनेहेतु बनाया था
उसवक्त हरजीराजे महाडिक के पास वह किला था उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी के मन मे कूटनीतिया शुरु हुई. दरसल हरजीराजे की पत्नी अम्बिका बाई छत्रपति राजाराम महाराज की सौतेली बहन थी.
जैसेही छत्रपति ने अम्बिकाबाई से जिंजी का किला मांगा वैसेही अम्बिकाबाई ने छत्रपती राजाराम पे आक्रमण करने की ठान ली, पर इससे पहले उनकेहि सिपाहियों ने छत्रपति राजाराम महाराज को जा मिलने की धमकी दी, और न चाहते हुए ही अम्बिकाबाई को छत्रपति राजाराम महाराज को जिंजी का किला देना पड़ा
अब जैसे जिंजी का कुछ ही सालो में तख्तापलट हुआ, जिंजी स्वराज्य की राजधानी बन गयी, औरंगजेब ने जुल्फिकार खान को जिंजी हासिल करने भेजा. 8 साल की लड़ाई के बाद जुल्फिकार खान ने जिंजी का किला हासिल किया पर उससे पहले छत्रपति राजाराम महाराज ने महाराष्ट्र में फिरसे कदम रखा और मुघलो को रामचंद्र पंडित, शंकरजी नारायण, संताजी और धनाजी की मदत मार गिराया
आखिर 1700 में पुणे के सिंहगड मेंछत्रपति राजाराम महाराज चल बसे. उनके बाद उनकी पत्नी रानी ताराबाई ने स्वराज्य को संभाला
औरंगजेब को उसकी पूरी जिंदगी लगी मराठो को तबाह करने में, फिरभी मराठा लड़ते रहे और आगे के वक्त में मराठो ने अटक तक अपना साम्राज्य बढ़ाया