बहिर्जी नाइक
क्या आप जानते है छत्रपति शिवाजी महाराज हमेशा अपनी लड़ाई कैसे जीतते थे?
वह अपने स्वराज्य के जासूसों के वजह अपनी हर लड़ाई जीतते थे,इतना ही नहीं बल्कि अपने हर शत्रु की जानकारी उन्हें इनसे ही मिलती थी, जिसके आधार पर वह अपनी योजना बनाते थे।और इन सब जासूसों के प्रमुख थे एक शक़्स, जिनके हर खबर पर शिवाजी महाराज अपने हर युद्ध की व्यूहरचना बनाते थे।
उनका नाम था बहिर्जी नाइक।
आज हम आपको बहिर्जी नाइक के बारे ही बताना चाहते है, जो महाराज की और स्वराज्य के सेना की तीसरी आँख थे।बहिर्जी नाइक किल्ले के आसपास के जंगलों में रहनेवाले थे। वह पहले अपनी पेट की भूख के लिए बहुरूपी भेस बदलकर लोगों का मनोरंजन करते थे। वह भेस बदलने में माहिर थे, और नक़ल करने में भी। वह तो बातों में भी बहुत होशियार थे।
बहिर्जी की पहली मुलाखत महाराज से हुई, तब महाराज स्वराज्य की सेर पर निकले थे। बहिर्जी अपनी कला दिखा रहे थे, उस वक्त उनका यह कौशल महाराज को पसंद आया और महाराज ने इसका फायदा स्वराज्य के लिए करना चाहा। बहिर्जी नाइक को महाराज ने अपने गुप्तहेर खाते में शामिल किया, जो शत्रुओं की जानकारी महाराज को देता था। इसी गुप्तहेर खाते का प्रमुख महाराज ने बहिर्जी नाइक को बनाया।
महाराज के इस गुप्त विभाग में लगभग चार से छह हजार सैनिक थे। जो महाराज की सेना के खास थे, क्यूंकि उनसे मिली हर जानकारी के बिना उनकी हर लड़ाई नाकाम हो सकती थी। इन जासूसों के जानकारी के आधार पर ही महाराज अपनी लड़ाई की चाल तय करते थे। इन सारे ६ हजार लोगों का नेतृत्व ६ लोग करते थे। और इन ६ लोगों के प्रमुख थे बहिर्जी नाइक। यह सारे लोग विजापुर, दिल्ली, कर्नाटक, पुणे, सूरत इन जगह पर फैले हुए थे। बहिर्जी ने गलत जानकारी देने पर किल्ले से कडेलोट की शिक्षा तय की थी। क्योकि इन जानकारिओं के आधार पर ही महाराज युद्ध की तैयारी करते।
बहिर्जी के गुप्तहेर खाते की कोई भाषा न थी। वह पंछियो और हवा के आवाज से अपने लोगों तक जानकारी पहुचाते थे, ताकि जानकारी का पता शत्रु को न लगे। महाराज किस मोहिम पर जा रहे है इस बात का पता सबसे पहले बहिर्जी को होता, और फिर वह और उनके लोग वहाँ के ईलाके की, और शत्रु की हर एक बात और चाल का पता लगाते थे। और वह खबर महाराज तक जल्द से जल्द पहुँचाते थे।
बहिर्जी नाइक किसीभी फकीर, वासुदेव, कोली, संत आदि भेस बदलने में माहिर थे। बहिर्जी सिर्फ भेस बदलने में ही नहीं बल्कि किसी के भी मुंह से हर एक बात चुराने में भी माहिर थे। वह आदिलशाह और औरंगजेब बादशाह के मुंह से भी बात चुराते थे , वो भी उनके महल में जाकर। और अगर आदिलशाह और बादशाह को पता चल भी गया की वह एक जासूस है तब भी वह बहिर्जी को पकड़ न पाते थे।
बहिर्जी ना केवल एक जासूस थे, बल्कि एक सैनिक भी थे। वह तलवार बाजी और दान पट्टा चलाने में भी माहिर थे। क्युकी कब किस घटना का सामना करना पड़े यह उनका विचार था। वह हर घटना के बारे में बहुत ध्यान से सोचते थे। शत्रु का जासूस कौन है? वह जासूस क्या करते है? वह इसके बारे में भी जानकारी रखते थे। बहिर्जी दुशमन तक गलत अफ़वाए कैसे पहुंचानी है यह भी अच्छे से जानते थे, और यह काम बहिर्जी और उनके गुप्त हेर खाते के लोग बड़ी सफाई से करते थे। बहिर्जी नाइक केवल शत्रु की ही नहीं बल्कि स्वराज्य की भी हर एक जानकारी के बारे में महाराज तक खबर पहूँचाते थे।
महाराज के अष्टप्रधान मंडल में गुप्तहेर खाते के प्रमुख बहिर्जी नाइक थे। वह हर जगह हर वक्त अलग अलग भेस में जाते थे। इसलिए वह जब भी कभी महाराज से मिलने जाते तब वह किसी अलग रूप में ही होते। और उन्हें सिर्फ महाराज ही पहचान पाते थे। महाराज के दरबारियों को भी पता नहीं था बहिर्जी नाइक के बारे में। दरबारी तो सिर्फ बहिर्जी जी के नाम से ही चर्चित थे।
इतिहास में भी किसीभी पुस्तक में उनके रूप के बारे में कुछ भी लिखित नहीं है। उनका सिर्फ नाम ही जानते है लोग। उनके मृत्यु के बारे में आज तक कोई खबर नहीं मिली है। ऐसा कई लोगों का मानना है की, ” भुपालगढ़ पर जासूसी करते समय उनकी मृत्यु हो गई।”, और कइयों का यह भी कहना है की ” लड़ाई में जख्मी होने पर भुपालगढ़ आने के बाद महादेव मंदिर में महादेव के चरणों में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। “
जिन इतिहासकरों ने गुप्तहेर जासूस के बारे में पता किया, उनके लिए उन्होंने एक सूत्र बनाया है की, जासूस मतलब ‘गुमनांम रहना’। जब तक एक जासूस गुमनाम रहता है, तब तक वह सफल होता है। और बहिर्जी आखिर तक गुमनाम रहे। इसी कारन उनके मृत्यु का भी किसी को ज्यादा पता नहीं है। यानि की उनकी मृत्यु का उत्तर इतिहास कारों के पास भी नहीं है।
बानुरगड़ , महाराष्ट्र के सांगली जिले के खानपुर तालुका में एक किल्ला है। यह किल्ला महाराष्ट्र के सांगली जिले के पूरब की तरफ है। यही सोलापुर जिले की शुरुवात है। वह उस किल्ले में ही बहिर्जी नाइक की समाधी स्थित है। बहिर्जी नाइक जैसा जासूस न कभी हुआ है और न कभी होगा। बहिर्जी नाईक पर ‘Bajind’ नाम की किताब भी है।