Shiva Kashid

शिवा काशिद

Shiva Kashid
शिवा काशिद

शिवा काशिद पन्हाला किल्ले के नजदीक नेबापुर गांव से थे । उनका जनम एक नाई परिवार में हुआ। वह स्वराज्य के मावले थे | जो स्वराज्य और छ. शिवाजी महाराज के लिए अपनी जान भी देने के लिए तैयार थे। ऐसा कहा जाता है कि वह दिखने में छ. शिवाजी महाराज जैसे थे।

ज्यादा देरी ना करते हुए हम बात करते है इस एक दिन के छ. शिवाजी महाराज की |

Chhatrapati Shivaji Maharaj
छ. शिवाजी महाराज
Panhala Fort

पन्हाला गड

 

दरअसल हुआ यूं के 1659 मैं छ. शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मारने के बाद विजापुर के दरबार से अफ़ज़ल खान की मृत्यु का बदला लेने के लिए सिद्धी जौहर को भेजा गया। सिद्धी जौहर अपनी विशाल सेना लेके स्वराज्य में आ गया। उस वक्त महाराज पन्हाला गड पे थे। सिद्धी जौहर ने पन्हाला किले को चारों और से घेर लिया। छ. शिवाजी महाराज ने सोचा कि अब बारिश का मौसम आएगा तब सिद्धी ज़ोहर घेराबंदी निकाल देगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सिद्धी ने घेराबंदी निकाली नही।

Siddi Johar

सिद्धी जौहर

छ. शिवाजी महाराज को वहा से निकलना था। इसलिए उन्होंने एक चाल खेली। वह सिद्धी जौहर को करार के लिये संदेसे भेजने लगे। करार करने का दिन तय हुआ। जिस दिन करार करना था उसके एक दिन पहले ही रात को महाराज ने वहां से निकलने की योजना की। उस दिन जोरदार बारिश हो रही थी। शिवाजी महाराज चंद मावलों के साथ वहां से निकले। उन मावलों में उनके साथ बाजी प्रभु देशपांडे और सिधोजी नाइक निम्बालकर थे। एक ओर जंगल के रास्ते से छ. शिवाजी महाराज किले से नीचे आ रहे थे। और दूसरी तरफ से शिवा काशिद शिवाजी महाराज के रूप में पालखी में बैठ कर कुछ मावलों के साथ किले से नीचे उतर रहे थे।

Baji Prabhu Deshapande
बाजी प्रभु देशपांडे

शिवा काशिद को महाराज के रूप में इसलिए भेजा गया के मुगल सेना को असली शिवाजी महाराज तक पोहचने में वक्त लगे और शिवाजी महाराज को भी गढ़ से नीचे जाने में आसानी हो सके । सिद्धी मसूद ने शिवा काशिद को पकड़ा। मसूद बोहत खुश हो गया । उसे लगा उसने शिवाजी महाराज को पकड़ा है। मसूद शिवा काशिद को लेकर सिद्दी ज़ोहर के शामियाने में पोहचा । सिद्दी ज़ोहर शिवा काशिद को देखकर बोला ” वाह रे सिवा, करार की बात करे बिना ही गढ़ से भागना चाहता था तू । यह सिद्दी ज़ोहर है मेरे हाथ से कोई नही बचता ” यह बोलकर वह जोरोसे हँसने लगा। महाराज के रूप में होने वाले शिवा काशिद ने करार की बात छेड़ि। अब शिवा काशिद और ज़ोहर करार की बाते करने लगे।

इतने में उनका एक सिपाई शामियाने में भागते हुए आया ओर उसने कहा “हुजूर हुजूर सिवाजी भाग गया” ।
ज़ोहर उस सिपाही पे गुस्सा हो गया और कहा अगर सिवाजी भाग गया तोह यह कोन है” । यह कह कर उसने फाजल खान को देखने को कहा। यह सुनकर सिद्दी जोहर ने शिवा काशिद को देखने के लिए फाज़ल खान को बुलाया।

फाजल खान यह अफ़ज़ल खान का लड़का था। फाजल खान नजदीक आया और उसमें शिवा काशिद के सर का जिरेटोप ऊपर किया और वह बोला “हुजूर यह सिवाजी नही है। सिवा ने हमारे अब्बाजान का कतल किया उस समय सिवा के सर पर घाव हुआ था। उसकी निशानी इसके सर पर नही है।” ज़ोहर गुस्सा हुआ उसने शिवा काशिद को बोहत बार पूछा कि “अगर तुम सिवा नहीं हो तोह कोंन हो तुम?”

शिवा काशिद भी उसपे एक ही जवाब कहता रहा कि “में ही हु सिवा”।

सिद्धी ज़ोहर बोहत ही गुस्सा हुआ और उसने काशिद को मार डालने का हुकुम दिया। तब शिवा काशिद ने ज़ोहर से कहा कि “भलेही मैं इस दुनिया में शिवा काशिद बनके पैदा हुआ हूं लेकिन मरते वक्त छ. शिवाजी महाराज बनके इस दुनिया से जा रहा हूँ। मेरे लिए इससे खुशी की बात क्या होगी कि मेरे जिस्म पे छ. शिवाजी महाराज के वस्त्र और माँ भवानी की कवड़ो की माल है।” इस तरह उनको वीरगति प्राप्त हुई।
उन्हें पता था कि अब वह जिंदा नही रहने वाले लेकिन उसके बावजूद भी उनके चेहरे पर किसी भी प्रकार का डर नही था। ऐसे थे छ. शिवाजी महाराज के शुरवीर मावले शिवा काशिद।

जब पन्हाला के घेराबंदी की बात की जाती है तब हम अक्सर वीर बाजी प्रभु देशपांडे का नाम लिया जाता हैं लेकिन शिवा काशिद को भूल जाते है। वीर शिवा काशिद को भी हमे उसी प्रकार याद करना होगा जिस प्रकार हम शुर बाजीप्रभु देशपांडे को याद करते है।

शिवा काशिद को मालूम था के वह मौत के मुँह में जा रहे है लेकिन उन्हें उसका कोई ख़ौफ़ नही था बल्कि उन्हें खुशी थी कि वह छ शिवाजी महाराज और स्वराज्य के काम आ रहे है।

और उन्हेंने कहा भी है कि “हमारे राजा के लिए में हजार बार मरने को तैयार हूं”

Shiva Kashid Statue

शिवा काशिद का स्मारक

इस घटना के बाद शिवा काशिद का स्मारक पन्हाला किले पर बनाया गया और वह आज भी आप वहां देख सकते हो।

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