छत्रपती शाहू महाराज
छत्रपती शाहू महाराज, जो छत्रापति सम्भाजी महाराज के बेटे थे। जब छत्रापति शाहू महाराज के बारे में हमने कुछ जानकारी हासिल की तो हमने कुछ चौक देने वाला इतिहास पढ़ा, जिससे हमारे दिलमें मराठा साम्राज्य के बारेमे और इज्जत बढ़ी। 18 मई 1682 में शाहू महाराज का जनम रायगढ़ पे हुआ।
छत्रापति सम्भाजी महाराज की हत्या 11 मार्च 1689 में हुई, उसके बाद मराठाओ के संकट को मिटाना है तो रायगढ़ किले को पहले हराना होगा ये औरंगजेब की सोच थी। औरंगजेब ने जुल्फिकार खान को रायगढ़ किला हासिल करने के लिए भेजा, मराठाओ ऐसे हालात में भी हार नह मानी।
रायगढ़ में एक एक मराठा मावळा अपने स्वराज्य के लिए आखरी सांस तक लड़ रहा था इन हालातों का डटकर जिन्होंने सामना किया वो थी येसुबाई साहेब, जो अपने पति छत्रापति सम्भाजी महाराज के मृत्यु के बाद भी हौसला न हारी।
रायगढ़ किले को जुल्फिकार खान हासिल करने वाला ही था। तब रानी येसुबाई साहब ने राजाराम महाराज को जिंजी भेजने की तैयारी की, रानी येसुबाई को ये मालूम था, कि अगर औरंगजेब के हाथ मे दूसरा शिवजी यानिकि शाहू लगा तो शायद वो जिंदा नही बचेंगे। क्योंकि शाहू केवल 7 साल के थे, इसीलिये उन्होंने राजाराम महाराज को जिंजी जा कर स्वराज्य संभालने कहा, इससे ये बात सामने आती है कि महारानी येसुबाई ने अपने बेटे से भी ज्यादा स्वराज्य के बारेमे सोचा, और यही बात है जो दुनिया के इतिहास में मराठाओ को औरो से अलग करती है।
3 नवंबर 1689 को मुघलो ने रायगढ़ किला हासिल कर लिया, मतलब मुघलो को किला हासिल करने में 8 महीने लगे।
औरंगजेब की कैद में होते हुए भी राजाराम महाराज को रानी येसुबाई और शाहू की खबर रहेगी ये काम भक्तजी हुजरे के पास था। रानी येसुबाई ने शाहू महाराज की अच्छेसे परवरिश की, शाहू महाराज ने इतनी कम उम्र में ही औरंगजेब के दिल जीत लिया था, औरंगजेब ने ही उनका नाम दूसरा शिवजी हटाकर शाहू रख दिया।
औरंगजेब ने शाहू महाराज को अक्कलकोट, इंदापुर सुपे, बारामती और नेवासे का जहाँगीर बनाया उनको 7000 की सेना दी और रानी एसुबाई को उनके नाम की मोहर दी जिसमे पारसी में कुछ ऐसा लिखा था, “येसूबाई इ वालिदा शाहू राजा सन अहद”। इसका मतलब है शाह राजा की माँ एसुबाई साल पहला।
9 मई 1703 की बात है, औरंगजेब ने शाहू महाराज को मुसलमान बनाने कहा , इस बात को शाहू महाराज ने मना किया, रानी येसु बाई ने बेगम की मदत से औरंगजेब को मनाने की कोशिश की तो औरंगजेब ने शाहू महाराज की बजह कोई 2 मराठा को मुसलमान बनाने की जिद की।
खण्डेराव गुजर और जगजीवन गुजर इन दो भाइयोने आगे आकर शाहू महाराज की रक्षा की, 16 मई 1703 को मोहर्रम के मौके पर गुजर भाइयो को धर्मान्तर किया गया और उनका नाम अब्दुर्रहीम और अब्दुर्रहमान रखा गया। शाहू महाराज छत्रापति होने के बाद उन्होंने उनको सातारा का सालगाव इनाम दिया, आज भी उनके वंशज सातारा के परली गांव में रहते है। खण्डेराव और जगजीवन गुजर छत्रापति शिवजी महाराज के सेनापति प्रतापराव गुजर के बेटे थे।
औरंगजेब ने कभीभी शाहु महाराज और रानी येसुबाई का कड़ा कम नही किया। छत्रपति शाहू और येसुबाई 1689 से 1707 तक औरंगजेब की कैद में रहे, 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उनके बेटे आज़म मुग़ल गद्दी पे बैठे।औरंगजेब की बेटी ज़िनतुनिस्सा और जुल्फिकार खान की सलाह से आज़म ने शाहू महाराज को कैद से मुक्त कर दिया, क्योंकि मराठा साम्राज्य में कलह हो सके।
ऐसा कहा जाता है कोल्हापुर भोसले घराने के परसोजी भोसले ने शाहू महाराज के साथ एक ही थाली में खाना खाया, जिससे शाहू महाराज तोतया नही ये बात स्वराज्य में आज जैसी फैल गयी और शाहू महाराज का स्वागत बड़ेही प्यार से हुआ।
12 अक्टूबर 1707 में शाहू महाराज धनाजी जाधव जैसा वीर योद्धा जिसने मुघलो के छक्के छुड़ा दिए थे, वो शाहू महाराज के साथ आ गए, महारानी ताराबाई अपने बेटे शिवाजी को लेके पन्हाला किले पे आ गयी। 12 जनवरी 1708 में शाहू महाराज छत्रपति शाहू महाराज बन गए, उनका राज्याभिषेक हुआ।
1719 मराठा और मुघलो में बोहोत ही महत्वपूर्ण समजोता हुआ , ये इस प्रकार था।
1.छत्रापति शिवजी महाराज के सब किले शाहू महाराज के पास आएंगे।
2. 1719 तक मराठाओ ने जीते हुए खानदेश, गोण्डवन,वरहाड,हैदराबाद और कर्नाटक भी स्वराज्य में शामिल हो जाएंगे।
3.मुघलो के कुछ इलाकों में चौथाई और सरदेशमुखी मराठा वसूल करेंगे और मुग़ल बादशाह की निगरानी के लिए 15000 फ़ौज तैनात करेंगे
4. मराठा मुघलो को हर साल 15 लाख होण देंगे।
5. रानी येसुबाई को मुघलो की कैद से मुक्त किया जाए।
बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद छत्रापति शाहू ने बाजीराव पेशवे को अगला पेशवा बनाया, पराक्रमी बाजीराव पेशवा के प्रति बोहोत लगाव था। छत्रापति शाहू महाराज ने कहा था कि एक तरफ 10 लाख फौज और एक तरफ बाजीराव , तो में बाजीराव को चुनूँगा। बाजीराव पेशवा की मदत से छत्रपति शाहू महाराज ने पूरे भारतभर में मराठाओ का डंका फैलाया। बाजीराव पेशवा और मस्तानी के बारेमे जब शाहू महाराज को समझा तब उन्होंने चिमाजी अप्पा को खत लिखकर कहा कि, बाजीराव को कोई भी परेशानी होनी नही चाहिये, ये खत आज भी मौजुत है।
छत्रापति शाहू महाराज ने 42 साल मराठा साम्राज्य को संभाला उनकी मृत्यु 15 दिसंबर 1749 में हुई।
जाधव, शिंदे, होळकर, आंग्रे, दाभाड़े, पवार और घोरपड़े इन सब घरानों को पेशवाओ के साथ छत्रापति शाहू ने संभाला। छत्रपति शाहू महाराज बोहोतही निपुण लीडर थे जिन्होंने अपने रिश्तेदारों को, अपनी सेना को और अपने स्वराज्य को अच्छेसे बांध के रखा और स्वराज्य को फैलाया।
पराक्रमी पेशवाओ की वजह से शायद बोहोत से इतिहासकार छत्रापति शाहू महाराज के असमान्य इतिहास को उजागर करना भूल गए है।
हम तहे दिल से नमन करते है छत्रापति शाहू महाराज को जिन्होंने स्वराज्य को बढ़ाया और उसकी रक्षा की।
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