आज हम जानेंगे कि क्या सदाशिवराव भाऊ पानीपत के युद्ध के बाद भी जिन्दा थे ?
पानीपत के युद्ध में बोहोत से मराठा मारे गए थे , इस स्तिथि में सदाशिवराव भाउ के मृत्यु की खबर ने मराठाओ को बोहोत दुःख हुआ। पर इस खबर पर पार्वतीबाई को अपनी पूरी जिंदगी में विश्वास नहीं था।सदाशिवराव भौ एक महँ योद्धा थे , वो हमेशा शत्रु पर सामने से वार करते। पानीपत में अपने प्रिय विश्वासराव को मरते देख उन्होंने अफगानी सेना पे जोरदार हमला बोल दिया। और उसीमे वो मारे गए। उनका शव ३ दिनों बाद मराठा मावलों के ढेर में मिला। दूसरे दिन उनका सर अफगानी सेना के पास मिला।ऐसा काशीराज पंडित बखर में लिखा है। पार्वतीबाई को जैसे अपने पति सदाशिव राव की आहट हो रही थी। कुछ वक्त ऐसे ही गुजरा और फिर सदाशिवराव भाउ के लौट आने की खबर ने सबको हक्का बक्का कर दिया। क्युकी मराठाओ ने सदाशिवराव के शव को खुद अपनी आखो से देखा था। अब मराठो मेंसे कुछ सरदार नए सदाशिवराव भाउ को जा मिले। उन्होंने बोहोत ही काम वक्त में बोहोत बड़ी सेना भी इकठ्ठा कर ली थी।
नरवर के नजदीक करेरा का किला उन्होंने में ही सदाशिवराव हु ये साबित करके हासिल कर लिया। उन्होंने सदाशिवराव भाउ की तरह ही फौज तोफे गार्दी और हाथी को लेके आगे बढ़ना चाहा। पर इस बार इनसे थोड़ी भूल हुई , उन्होंने खर्चे की कमी की वजह से रास्ते में आने वाले मराठो के गांव कोही लूट लिया। नारायणराव पेशवा और पार्वतीबाई को सदाशिवराव भाउ सचमे लौट आये है ये बात बताने वाले बोहोत से खत मिले। उधर नए सदाशिवराव भाउ ने नर्मदा और तापी नदी को पर करकें खानदेश में हल्ला मचाया। तभी माधवराव पेशवा ने नए सदाशिवराव को कैद किया। आगे सदाशिवराव को ढोंगी साबित करके उन्होंने नगर के किले में कैद किया। उसे एक ही जगह पे न रखते हुए बोहोत्से किलो पे भेजा गया , पर रत्नागिरी के सुभेदार रामचंद्र नाइक परांजपे ने फितूरी करके नए सदाशिवराव भाउ को आज़ाद कर दिया। अब ये मामला और भी संगीन होते जा रहा था। नए सदाशिव भाउ ने कोकण में हल्ला मचाना शुरू किया। सदाशिव भौ ने राजमाची किला हासिल कर लिया। अंग्रेजो ने इसमें उनका हाथ बटाया। नाना फडणवीस ने शिंदे होल्कर और पानसे को नए सदाशिव को पकड़ने को कहा। उन्होंने सदाशिव भाउ की फ़ौज के ऊपर ऐसा हमला किया की नए सदाशिवभाऊ भागने पे मजबूर हो गए। उन्होंने अंग्रेजो की मदद लेने के लिए बेलापुर से मुंबई तक जाना चाहा पर बिच रास्ते में राघोजी आंग्रे ने उन्हें पकड़के नाना फडणवीस के पास लाया। नए सदाशिव भाउ ने फिरसे एक बार उनको परखने की बिनती की। नाना फडणवीस ने रामशास्त्री , गोपीनाथ दीक्षित , हरिपंत फड़के , बाबूजी नाइक बारमतिकर जैसे मध्यस्त को लेकर सभा राखी। यहाँ पे एक कथा बोहोत लोकप्रिय थी , उसकी सच्चाई के बारे में मुझे आशंका है। नाना फडणवीस ने जो भी सवाल सदाशिवराव भाउ के बारेमे पूछे वो सभी के जवाब नए सदाशिवराव भाउ ने अच्छी दिए , फिर नाना ने पार्वतीबाई से नए सदाशिव को कुछ खासगी सवाल पूछने को कहा। पार्वतीबाई ने पूछा की पानीपत के पहले की रत जब हम देर तक बाते कर रहे थे तब दिए का तेल अचानक से ख़तम हुआ तब आपने क्या किया ? क्या आपको याद है ? नए सदाशिव ने कहा ” है मुझे याद है , उसके बाद हम सो गए ” तभी पार्वतीबाई ने कहा की ये ढोंगी आदमी है। क्युकी उसके बाद मेने फिरसे दिए जलाये और हम सुबह तक बाते करते रहे।
१८ दिसम्बर १७७६ को उस ढोंगी को गधे पे बिठाकर पुरे पुणे पे घुमाया गया और बाद में उसे सूली पे चढ़ाया गया। पर ये ढोंगी था कोण? बुंदेलखंड में छत्रपुर गांव में सुखलाल नाम का एक ब्राम्हिन था। माँ का नाम अन्नपूर्णा और बाप का नाम रामानंद। घरेलु झगडे से तंग आकर ये एक दिन घरसे भाग गया और उसे कुछ लोगो ने देखकर गलतीसे सदाशिव भाउ समझ लिया। इसी बात का सुखलाल ने फायदा उठाया