स्वराज्य सेनापति वीर हंबीरराव मोहिते
छत्रपति शिवाजी महाराज के पास कुछ ऐसे सैनिक थे जो उनके एक इशारे पर जान भी न्योछावर करने को तैयार थे, और उनमेसे कुछ सैनिक तो किसी बड़ी चट्टान को भी काट कर रख दे , इतने ताक़दवर थे ,हम बात कर रहे है हंबीरराव मोहिते के बारे मे।
हंबीरराव के परदादा रातोजी मोहिते जो निजामशाही के बोहोत बड़े पराक्रमी सैनिक थे, उन्हे निजामशहा ने “बाजी’ खिताब दिया था। ऊस वक्त मोहिते घराणे के पराक्रमी पुरुष तुकोजी मोहिते तलंबीड गाव के मुखींया थे, इसी दार्मियां धाराजी मोहिते शहाजी राजे भोसले की सेना मे शामिल हुए।
संभाजी और धाराजी मोहिते ऊस वक्त के मशूर योद्धा थे इस बात का जिकर आदिलशाही फार्मानो मे दीखता है। संभाजी मोहिते हमेशा शहाजी राजे भोसले के साथ थे, शायद इसीलिए शहाजी राजे ने छोटे बेटे छत्रपति शिवाजी महाराज की शादी संभाजी मोहिते की बेटी सोयराबाई से की। सम्भाजी मोहिते के बेटे हंसाजी मोहिते उर्फ हंबीरराव मोहिते को छत्रापति शिवाजी महाराज ने अपनी सेना का सेनापति बनाया, इसके पीछे भी एक दिलचस्प बात है।
24 फ़रवरी 1674 को बहलोल खान के साथ लड़ते हुए प्रतापराव गुजर की मौत हुई, ये खबर मराठों में आग की तरह फैल गयी तब अचानक छत्रपति शिवाजी महाराज ने हंबीरराव मोहिते को युद्ध मे भेजा।
जैसे ही हंबीरराव युद्ध मे उतरे वैसे ही मराठों का साहस दो गुना बढ़ गया और मराठों ने मुघलो को बीजापुर तक भगा भगा के मार गिराया।
हंबीरराव मोहिते के युद्ध कौशल के बारेमे और कहा जाए तो छत्रापति शिवजी महाराज ने उनकी सेना में एक कानून बनाया की, जो आदमी 100 शत्रुओं को एक युद्ध मे मारेगा, उसकी तलवार पे एक सुवर्णचिन्ह उनकी शौर्यताका प्रतीक मानकर लगाया जाएगा, हंबीरराव मोहिते की तलवार प्रतापगढ़ में है जिसपे ऐसे 6 सुवर्णचिन्ह है।
हमबीरराओ की बेटी ताराबाई जो आगे जाके मराठों की गौरवशाली महारानी बनी। वो शिवाजी महाराज के छोटे बेटे राजराम की पत्नी थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के बाद उन्होंने हंबीरराव को दिलेर खान और बहादुर खान पे आक्रमण करने को कहा इसके बाद उन्होंने मुघलो का खानदेश, गुजरात ,बरहानपुर, वरहाड, माहूड और वरकड़ तक सभी शत्रुओं को भगाया। 1676 में कर्नाटक कोप्पल के आदिलशाही सरदार हुसेन खान मियान को बोहोत बुरी तरह से हरा कर उधर के लोगों को हुसेन खान के जुल्म से मुक्त किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज के मृत्यु के पश्चात हंबीरराव मोहिते ने संभाजी महाराज का साथ दिया और अपने स्वार्थ को दूर रखके स्वराज्य के बारेमे सोचा, संभाजी महाराज को छत्रपति बनाने में सबसे ज्यादा हंबीरराव मोहिते का हाथ था।
उसके बाद हंबीरराव मोहिते ने बुरहानपुर पे आक्रमण करके मुघलो को बुरी तरह से तहस नहस कर दिया, इस बात से औरंगजेब बोहोत गुस्सा हुआ। इसके बाद हंबीरराव मोहिते ने शहाबुद्दीन खान उर्फ गजीउद्दीन खान बहादुर को हराया, खान रामशेज किले पे था तभी उसपे अचानक हमबीरराओ ने आक्रमण करके उसको मारा , पर इसमे हंबीरराव मोहिते बुरी तरह जख्मी हुए थे। इसके बाद भीमा नदी के पास सरदार कुलीच खान, पन्हाला के शहजादा आजम भिवंडी कल्याण के रहुल्लाखान और बहादुर खान को हराया।
हंबीरराव मोहिते ने कई युद्ध जीते है, कुछ युद्ध मे हमबीरराओ मोहिते छत्रापति सम्भाजी महाराज के साथ थे।
जिंदगी की आखरी लढाई उन्होंने वाई के पास लड़ी जिसमे उन्होंने सरदार सरजाखान को हराया पर हंबीरराव मोहिते की मौत तोफगोला लगकर हुई।
इस बुरी खबर से छत्रपति सम्भाजी महाराज को बोहोत दुख हुआ , एक महान योद्धा की मौत भी युद्ध के मैदान में हुई।
हंबीरराव मोहिते ने हमेशा धन संपत्ति और खुद से भी ज्यादा एहमियत अपने स्वराज्य को दी, उनके जैसा वफादार और उनके जैसा बहादुर योद्धा शायद ही कही दुनिया मे मौजूद होगा।
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