हुतात्मा चौक
हम बाते करगें हुतात्मा चौक के बारे मे ।आज जिसे हुतात्मा चौक के नाम से जाना जाता है, उसका पुराना नाम फ्लोरा फाउंटन था।
क्या आप जानते है, फ्लोरा फाउंटन को हुतात्मा चौक यह नाम कैसे मिला?
हुतात्मा चौक यह मुंबई फोर्ट क्षेत्र का एक ऐतिहासिक चौक है, जिसका पुराना नाम फ्लोरा फाउंटन है। उसके पास ही दादाभाई नौरोजी मूर्ति, हुतात्मा स्मारक और फ्लोरा फाउंटन यह स्मृतीया दर्शाती हुई वास्तुयें है।
मुंबई, गुज़रात और महाराष्ट्र यह १९५६ के स्वतंत्र राज्य थे। मुंबई को भारत की आर्थिक राजधानी इस नाम से जाना जाता है।
मुंबई जैसे आर्थिक दृष्टी से बड़े राज्य को अपने राज्य में शामिल क्र अपने राज्य को बड़ा बनाना की गुजरात की चाह थी। और यह बात कांग्रेस सरकार द्वारा की जानेवाली थी।मुंबई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई इनका भी यही कहना था, पर मुंबई के लोग इस बात से सहमत नहीं थे।मुंबई के ज्यादातर लोग मराठी भाषा के थे। इसलिए मुंबई को महाराष्ट्र शामिल करने के लिए मुंबई के लोगों ने आंदोलन किया।
२१ नव्हंबर १९५६ को सुबह से ही कुछ तनाव भरा माहौल था। राज्य की पुनर्रचना करने वाले आयोग ने मुंबई को महाराष्ट्र में सम्मलित करने से मन क्र दिया, इससे पूरी मुंबई के लोगों में गुस्से का माहौल था।
उन्होंने इस बात का निषेध हर जगह दर्शाया। वहाँ काम करने वाले लोग एक हुए और उन्होंने आंदोलन किया वह भी सफ़ेद कपडों में। यह लोग फ़्लोरा फाउंटन के सामने जमा होने वाले थे।
शाम के ४ बजने के बाद सरे कारखानों से निकल के यह लोग फ़्लोरा फाउंटन के सामने आकर निषेध करने वाले है, ऐसा पुलिस को पता चला। एक ओर सीएसटी से और दूसरी ओर बोरीबंदर से लोग आह रहे थे। वह भी सफ़ेद कपड़ो में जोर से जोर घोषणाएं देते हुए।बिना पुलिस की चिंता किए लोग आते जा रहे थे, जब की ऐसा लग था की पुलिस वजह से लोग नहीं आएंगे। वह के महिला वर्ग को पहले ही घर भेजा गया था।बिना किसी पुलिस दबाव के लोग आते जा रहे थे।
और फ़्लोरा फाउंटन के सामने लोग आंदोलन करने बैठ गए , और कुछ समय बाद विपरीत घटा।
लोगों पर लाठिया बरसाई आंदोलन ख़त्म करने के लिए, पर फिर भी लोग पीछे न हटे।तो पुलिस को गोलियां चलाने का आदेश मिला। मुंबई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई इन्होने देखते ही गोली चलाने का आदेश दिया। जैसे की फ़्लोरा फाउंटन के पानी को सड़को पे बहता देखा जाता है, वैसे ही प्रदर्शनकारियों के रक्त का प्रवाह उन सड़को पर बहता देखा गया।
इस आंदोलन में साल १९५७ के जनवरी तक १०५ हुतात्मा शहीद हुए, पर कई लोगों का कहना है की १०६ हुतात्मा शहीद हुए थे।
सारे हुतात्मा और मराठों के सामने कांग्रेस सरकार को भी झुकना पड़ा। और आखिर में १ मई १९६० को मुंबई के साथ संयुक्त महाराष्ट्र की स्थापना की नीव राखी गयी। इसके बाद १९६५ में उस जगह हुतात्मा स्मारक की स्थापना हुई।
महाराष्ट्र की लड़ाई में अपने शहीदों को याद दिलाने के लिए, इस चौक का नाम हुतात्मा चौक रखा गया। किसान और कार्यकर्ता ने हात में पकड़ी मशाल की प्रतिमा को चौक में खड़ा कर दिया।
आज भी उस काली सड़को पे उन १०६ हुतात्माओं का खून और उनके लिए आँसू, मुंबई के लोगों के सूखे नहीं है।
दुनिया में बहुत से आंदोलन हुए, और बहुत से लोगों इनमे अपनी जान खो दी। पर आज भी उन हुतात्माओं के परिवार का दुःख कम न हो सका।
क्या हम १ मई को इन हुतात्माओं के बलिदान को इतनी श्रद्धा से याद करते है।
इस घटना पे एक मराठी नाटक भी बनाया गया है , उसका नाम है, ” गोरेगाव वाया दादर “।