सरनोबत येसाजी कंक
आज हम बात करेंगे येसाजी कंक के बारे में। जिनके सामने महाकाय हाथी भी पराजीत हुआ, ऐसे शिवाजी महाराज के मावले।
“स्वराज्य निर्माण क्यों करे?” इस सोच से लेके आखरी साँस तक, छत्रपती शिवाजी महाराज के आदेश पर अपनी जान हतेली पे रख, स्वराज्य की सेवा में अपना योगदान करनेवाले मराठाओं में से एक थे – शूरवीर मराठा ” येसाजी कंक “!
स्वराज्य निर्माण के कार्य में उन्होंने बहुत सी लड़ाईया लढी। उनके इस काम का कोई तोड़ नहीं है। जो भी लड़ाई सामने आई, उसमे वह साहस से लड़कर शत्रु को मुहतोड़ जवाब देते और हर लड़ाई जितने के बाद ही लौटते।
छत्रपती संभाजी महाराज के शासनकाल में भी लेने जाने वाले वीर मराठो में एक नाम येसाजी कंक यह भी है। उनके वीरता के चर्चे इतिहास में कई जगह है। जब स्वराज्य के इतिहास की बात आती है तो येसाजी कंक का उल्लेख किया जाता है।
येसाजी कंक के बारे में एक और खास बात है की वह मजबूत और हाथी जैसे शरीर के थे। उनमे १०० हाथीओं जैसी ताकद थी, उनका सामर्थ्य असामान्य था। शिवाजी महाराज का उनके शक्ति पे कितना विश्वास था यह बात बतानेवाला एक किस्सा है, जो आज हम आपको बतानेवाले है।
१६७६ में राज्याभिषेक समारोह के बाद, शिवाजी महाराज दक्षिण पर कब्ज़ा करने के लिए आगे बढे। आदिलशाही का प्रबंधन करने के लिए कुतुबशाह को अपने साथ ले गए। इसी कारण कुतुबशाह को मिलने वह भागानगरी गए। तब उनके साथ उनके कुछ विश्वासु, वफादार और करीबी लोग थे। इन सब में येसाजी कंक भी शामिल थे।
जब शिवाजी महाराज ने दादामहल में प्रवेश किया, तो कुतुबशाह ने खुद आगे आकर उनका स्वागत किया। जब महाराज महल में आकर बैठे तब कुतुबशाह ने उन्हें एक सवाल पूछा, जो कई बार उनके मन में आया था।
“राजे, आपकी सेना बहुत बड़ी है, लेकिन इसमें हाथी क्यों नहीं है? “
महाराज ने कहा, “तानाशाहजी ऐसा कुछ नहीं है, हमारे पास ५०००० हाथी है। यानी एक एक सिपाही एक एक हाथी के समान है। यदि आप विश्वास नहीं करते है, तो आप हमारे सेना में से किसी को भी चुन सकते है। वह आदमी आपकी सेना के किसी भी हाथी के साथ लड़ेगा।”
महाराज के इस उत्तर को सुन कुतुबशाह स्तब्ध रह गया। लेकिन उन्हें अभी भी विश्वास न था, की कोई हाथी से मुकाबला कर सकता है? इसलिए उन्होंने महाराज के सेना के लोगों को आजमाने का फैसले किया।
उसने राजा के चारों ओर खड़े लोगों को देखा। येसाजी कंक जैसे मजबूत शरीर वाले इंसान पर कुतुबशाह की नजर रुक गयी। उन्होंने येसाजी को हाथी से मुकाबला करने के लिए चुन लिया। येसाजी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और मुकाबले का दिन तय हुआ।
शिवाजी महाराज ने उनके अकेले में देखा और महाराज को येसाजी कंक के निडरता का प्रतिक उनकी आँखों में दिखाई दिया। कंक ने भी अपनी गर्दन घुमाई और महाराज को शपथ दिलाई,
“आप यह सुनिश्चित करे की जित हमारी होगी। “
हाथी और येसाजी के मुकाबले के लिए बैठक की व्यवस्था की गई और आखिरकार वह क्षण आ गया।
येसाजी ने मैदान में उतरने से पहले महाराज के आशीर्वाद लिए। उन्होंने अपने साथ २ तलवारे ली और बड़े ही आत्मविश्वास से मैदान में उतरे। कुतुबशाह के कहने पर उनके सैनिकों ने हाथी को पिछलेवाले रस्ते से मैदान में लाया। वह हाथी श्रृंखला में बंधा था, और उसे प्रबंधन करने के लिए लगभग २५ सैनिक थे। तो सोचिये की वह हाथी कितना शक्तिशाली था…!!
उन सैनिको ने हाथी को श्रृंखला से मुक्त किया। सामने येसाजी कंक को देख हाथी ज्यादा ही गुस्से में आकर उनपर आक्रमण करने आया। गुस्से में हाथी येसाजी पर आक्रमण करने आते ही येसाजी एक ओर भागे, जैसे उन्हें पहले से ही पता था उसकी चाल का।
वहाँ इकट्ठे हुए लोग तो जैसे अपनी जान हतेली पर रख यह मुकाबला देख रहे थे। यहाँ ऐसा सुनिश्चित था की हाथी और इंसान का यह मुकाबला हाथी ही जीतेगा।
हाथी आक्रमण करते ही येसाजी दूसरी ओर जाते, ऐसा येसाजी कंक कुछ वक्त तक करते रहे। इस बात से हाथी और भी गुस्से में आकर आक्रमण करने लगा। येसाजी तो हाथी के साथ एक खिलौंने की तरह खेल रहे थे, और हाथी खेल रहा था। कुछ वक्त ऐसा ही चला।
आखिरकार हाथी थक गया और उसकी आक्रमकता काम हो गयी। येसाजी एक मौके का इंतजार कर रहे थे। इस बार उन्होने हाथी पर आक्रमण किया।
अब की बार सह्याद्री के सान्निध्य में, मिटटी की कड़ी म्हणत हाथी पर भारी पड़ी।
येसाजी ने खुद को हाथी के जाल में फसा लिया। हाथी के सूँड में वह फसने लगे थे, उस समय उन्होंने अपनी पूरी ताकद को इकट्ठा किया। उन्होंने एक तरफ से अपनी तलवार निकाली और हाथी सूँड पर वार किया। और उसे घायल कर दिया। देखने वाले लोग बस देखते ही रह गए।
कुतुबशाह तो बस मुँह में ऊँगली डालना बाकी था। येसाजी का यह घाव तो आखरी घाव था। इससे डरकर हाथी भाग ही गया और वापस लौटा ही नहीं। यह मुकाबला सिर्फ एक आदमी और हाथी न था। इस में किसी आदमी का जितना संभव ही नहीं था। वह तो सिर्फ येसाजी कंक जैसे शूरवीर के लिए ही संभव है।
हर जगह तो बस उनका जयघोष हो रहा था। उन्होंने लोगों को अभिवादन किया। इस बिच उनकी नजर महाराज पर पड़ी, और ऑंखें उनपर ही टिक गई। उनका सीना गर्व से चौड़ा हुआ, की उन्हें महाराज की आँखों में उनके लिए अभिमान दिखाई दिया, जो उनके लिए सबसे मूल्यवान था।
आज भी येसाजी कंक जी के वंशज भुतोंडे गाव, तालुका भोर, पुणे यहा रहते है। सिद्धार्थ कंक यह येसाजी कंक जी के थेट वंशज है।
येसाजी और उनके जैसे कई अनेक योद्धाओं के कारन स्वराज्य में सरे लोग निश्चिन्त थे। हम खुशकिस्मत है की इनके जैसे वीर योद्धा हमारे स्वराज्य को मिले।