पानीपत का युद्ध होकर अब २५० साल से भी ज्यादा वक्त हुआ पर अभीभी कई इतिहासप्रेमी लोगो को पानीपत के बारेमे और जानने में रूचि है। इस युद्ध में ४० हजार मराठा मावळे मरे गए , उनमे कई औरते और छोटे बच्चे भी शामिल थे। अहमद शाह अब्दाली ने २२ हजार मराठा युद्धकेदी को अफगानिस्तान लाया। इन युद्धकैदियोंको लम्बी लम्बी कतरो में खड़ा किया और इन्हे अफगानी सेना के साथ दिल्ली और मथुरा लाया गया। इतिहास में इनकेबारेमे थोडीही जानकारी है ,सियार उल मुत्ताखिरीन नामक एक इतिहासकार ने इनके बारे में कुछ ऐसा लिखा है ” पानीपत में कैद हुए दुखी सैनिको को लम्बी लम्बी कतारों में खड़ा किया गया , और उन्हें थोडाबोहोत पकाहुआ खाना दिया गया और थोड़ा पानी दिया गया। युद्ध के बाद जो भी बचे हुए मराठा मावळे औरते और छोटे छोटे बच्चे बच गए थे ,उनको गुलाम बनाया गया। इनमेसे बहोतसे मराठा अच्छे पेशे के थे। ”
पानीपत का युद्ध कैसे लढा गया इस बात पे इतिहास में पूरा वर्णन है , पर बचे हुए योद्धाओ का क्या हुआ ? इस बारेमे किसीको कुछ जानकारी नहीं।
पानीपत के युद्ध के २ महीने बाद २० मार्च १६६१ को अहमद शाह अब्दाली दिल्ली से अफगानिस्तान जाने लगा। उसके साथ २२ हजार युद्ध कैदी भी थे। जाते जाते पंजाब में सीखो ने कुछ मराठा औरतो को मुक्त किया , इस बात का जिक्र इतिहास में हुआ है। पानीपत के युद्ध में बलूची सेना अब्दाली के साथ में लड़ी थी। युद्ध के २० दिन पहले १५००० घुड़सवार अताईखान नाम के एक बलूची सरदार के साथ अब्दाली को शामिल हुआ था। दरसल पानीपत के ३ साल पहले अब्दाली और बलूचिस्तान का शासक मीर नासिर खान नूरी के बिच में एक सौदा हुआ था। उस सौदे ये तय हुआ था की जब जब अब्दाली को सेना की जरुरत होगी तब तब मीर नासिर खान नूरी अब्दाली को अपनी सेना दे देगा , और इसके बदले में अब्दाली मीर नासिर खान नूरी की पूरी सेना का खर्चा खुद उठाएगा। पर पानीपत से लौटते समय अब्दाली के पास मीर मीर नासिर खान नूरी को देने के लिए कुछ भी नहीं था और इसीलिए अब्दाली ने युद्धकेदियो को बलूचिस्तान के सरदारों को दे दिया।
इसका दूसरा कारन ये भी हो सकता है की उस वक्त मराठा कैदियों की हालत काफी कमजोर थी क्युकी पिछले ३ महीनो से उन्हें अच्छी खाना भी नसीब नहीं हुआ था, और इतनी सेना आगे ले जाना भी मुश्किल था इसी वजह से अब्दाली ने मराठा युद्धकेदी बलूच में ही छोड़ दिए.
पानीपत में लढे हुए बलूच सेना अलग अलग जाती की थी , और मराठा युद्धकेदियो की तादात भी बोहोत ज्यादा थी इसलिए मीर नासिर खान नूरी ने उन्हें हर जात की बलूची सेना के साथ बाँट दिया। क्युकी इतनी तादात में अगर मराठा सेना एकसाथ रहे तो खतरा भी हो सकता था.
युद्धकेदियो में मीर,मज़ारी,रायसानी और गुरचानी इन बलोच जात में मराठा आज भी शामिल है। मराठा युद्धकेदियो के वंशज मुस्लिम हुए है पर उन्हें अपने मराठा होने पर आज भी गर्व है। इनमेसे हमें बुगटी मराठा के बारे में कुछ जानकारी है। दरसल इनमे ३ मराठा वर्ग शामिल है।
बहोतसे मराठा युद्धकेदी कालपर , मसूरी, शंबानी,नोंथांनि,पिरोजानि और रहेजा इन जातिओमे बाटे हुए है। आज ये वर्ग मसूरी मराठा , नोंथांनि मराठा , कालपर मराठा के नाम से जाना जाता है। इस वर्ग को लगभग १८० साल गुलाम बनकर रहना पड़ा। १९४४ में यहके नवाब अकबर खान बुगटी ne इनको समान हक़ देकर गुलामगिरी से मुक्त किया। उससे पहले ये ऊंट की देखभाल करना , खाना बनाना और लोहार काम करना ये काम करते थे।
हर एक बलूच जात में खुदके कुछ कायदे कानून होते थे जिसे वह जिर्गा कहते है। १९४४ से पहले इनमे बोहोत आसमान कायदे थे, जैसे की अगर एक बुगटी आदमी ने दूसरे बुगटी आदमी का खून किया तोह खून हुए आदमी के परिवार मेसे किसी आदमी को खून किये हुए आदमी के परिवार मेसे किसी एक आदमी को मारने की मुभा थी। पर अगर किसी बुगटी आदमी ने मराठा बुगटी आदमी का खून किया तोह खुनी को सिर्फ कुछ हर्जाना भरने को कहा जाता था। अगर किसी मराठा बुगटी आदमी ने बुगटी आदमी का खून किया तो बुगटी को मराठा बुगति परिवार मेसे किसी भी २ आदमी को मरने की मुभा थी।
१९६० के बाद इस मराठा समाज ने एजुकेशन सेक्टर में बुगटी समाज से भी ज्यादा प्रगति की। १९५० के दशक में बलूचिस्तान में जब गैस का संशोधन हुआ तब यहाँपे सुई पेट्रोलियम कंपनी शुरू की गयी और उसमे बोहोतसे मराठा मैनेजर और superviser बन गए
दूसरा समाज है साहू मराठा समाज – ये मराठा समाज शुरुवात से ही अलग था। बुगटी रेगिस्तानी जमीं है। मर्रे और सियाहाफ़ में थोड़ा बोहोत पानी था , तो साहू मराठो को यहाँ पे खेती करने भेजा गया। मराठो ने भी यहाँ पे बोहोत अच्छी खेती की और गेहू और बाजरी की खेती की। इस वर्ग ने अपना नाम स्वराज्य के छत्रपति शाहू महाराज के नाम से रखा। साहू मराठो में गढवानी, रंगवानी, पेशवानी , किलवाणी ऐसे और भी जाती है। इनमेसे पेशवानी ये नाम पेशवा नाम से होने की आशंका है
शाहू मराठे मुस्लिम है फिर भी उनके रीती रिवाज आज भी मराठी है। यहाँ शादी भी मराठी रीती रिवाजो से की जाती है। यहाँ के मराठे अपनी मा को आज भी आई कहके बुलाते है।
तीसरे है दरुरग मराठा – ये वर्ग की संख्या काफी काम है। ये मराठा हमेशा बुगटी सरदार के साथ होते थे इसलिए इन्हे बोहोत सन्मान मिलता था, इनमेसे बोहोत्से बड़े जमींदार और पैसेवाले है। आज भी ये मराठा को छत्रपति शिवजी महाराज पे गर्व है। इनमेसे बोहोत्से लोगो का फेसबुक फोटोज पे छत्रपति शिवजी महाराज दिख जायेंगे।
बलूचिस्तान में मराठो ने वह के लोगो से भी ज्यादा उन्नति की। आज बलूच मराठे इंजीनियर,सरकारी अफसर, प्रोफेसर और राजनेता भी है। फ़िलहाल डेरा बुगटी गांव मेसे २०००० लोगोमे ७००० लोग मराठा है, सुई शहर में ८००० मराठा है और सुई मुन्सिपल कारपोरेशन में १४ में से ७ मैनेजर मराठा है।
१९९० के दशक में जब हिंदी मूवी को पाकिस्तान में बंदी नहीं थी तब नाना पाटेकर के तिरंगा मूवी का डायलॉग ” में मराठा हु, और मराठा मरता है या मरता है ” यहाँ पे बोहोत फेमस हुआ था। “the great maratha ” ये सीरियल भी यहाँ के लोगो ने देखि है।
baby डॉल ये फेमस हिंदी गण बलूच गाने से प्रेरित है इस गाने के सिंगर सब्ज अली बुगटी भी मराठी है। आप इस गाने को यूट्यूब पे देख सकते है लिंक डिस्क्रिप्शन में है।
आज महाराष्ट्र की मराठा जनता को बलूच मराठा को नमन करना चाहिए। क्युकी पानीपत के युद्ध के पहले बोहोतसे मराठा पूर्वज युद्ध में शामिल होने घरसे तो निकले थे , पर फिर कभी अपने घर नहीं लौट पाए। क्या पता किसी महाराष्ट्र में रहने वाले मराठा का कोई दूर का रिश्तेदार बलूचिस्तान में हो।