Friday, April 26, 2024
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Maratha vs mughal war hindi

आज हम बात करेंगे छत्रपति शिवाजी महाराज और मुघलो के बीच मे हुए युद्ध के बारे में. इस वीडियो के आखिर में हम कुछ सवालों का जवाब देना चाहेंगे इसलिए इस वीडियो को आखिर तक जरूर देखें
‌छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी पूरी जिंदगी स्वराज्य को स्थापन करने में लगाई . इसमेंसे कुछ बड़े युद्ध हुए
‌साल्हेर का युद्ध- ये युद्ध 1672 के फरवरी महीने में हुआ. दरसल पुरंदर के तह के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने 23 किले औरंगजेब को दिए थे, जिसमे कोंडाणा ,पुरंदर ,लोहगढ़,करणाला, माहुली भी शामिल थे.
‌1670-1672 में छत्रपति शिवाजी महाराज की ताकद दक्खन में और भी बढ़ती गयी. 1671 में सरदार मोरोपंत पिंगले ने औंध, पत्ता, और त्रिम्बक को मुघलो से आज़ाद करवाया और साल्हेर और मुल्हेर पे हमला किया.
‌साल्हेर को बचाने के लिए औरंगजेब ने उसके 2 सरदार ईखलास खान और बहलोल खान को 12000 घुड़सवार के साथ भेज दिया. छत्रपति शिवाजी महाराज ने पलटवार करते हुए अपने 2 सरदार मोरोपंत पिंगले और प्रतापराव गुजर को युद्ध के लिए भेज दिया.
‌मराठाओ के पास 25000 घुड़सवार और पैदल मावळे थे, और मुघलो के पास 45000 घुड़सवार और पैदल सेना ,हाथी घोड़े ऊंट और तोफे थे.
‌ऐसा कहा जाता है कि मराठा मावलों ने इस युद्ध मे मुग़ल सेना पे ऐसा हमला किया कि अपनी सेना को मरते देख मुघलो की बाकी सेना भागने लगी.
‌ये युद्ध एक दिन में ही खत्म हुआ इसमे लगभग 10000 मावळे और 10000 मुग़ल सैनिक मारे गए.
‌इस युद्ध मे 2000 मुग़ल सेना भाग गई और बाकी बची सेना और मुघलो के 22 सरदारो को मराठो ने बंदी बना लिया. मराठाओ का महान योद्धा सूर्यजीराओ काकड़े इस युद्ध मे शाहिद हुए.मराठाओ ने साल्हेर के साथ मुल्हेर भी काबिज कर लिया
‌उस वक्त की सभासद बखर में इस युद्ध के बारे में लिखा है कि जैसी ही युद्ध शुरू हुआ कोसो दूर से मराठो के घोड़ो की धूल के बादल बन गए, अंगिनाद हाथी घोड़े और ऊंट मैरे गए सैनिको के खून की मानो नदिया बहने लगी
‌भूपालगड का युध्द- 1679 में दिलेर खान ने संभाजी महाराज को लेके भूपालगड पे आक्रमण किया, जैसे ही भूपालगड के किलेदार फ़िरंगोजी नरसाला को समझा कि दिलेर खान के साथ शिवपुत्र संभाजी महाराज है, वैसे ही उन्होंने शस्त्रत्याग कर दिया.
‌फ़िरंगोजी नरसाला और शाहीस्ते खान संघर्ष के बारे में और जानकारी के लिए comment करे.कैसे फ़िरंगोजी नरसाला ने 380 मावलों के साथ 20000 मुग़ल सेना से 2 महीनों तक संघर्ष किया था.
‌संगमनेर का युद्ध- ये युद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज का आखरी युद्ध था . जब छत्रपति शिवाजी महाराज जालना से आ रहे थे तब अचानक मुघलोने संगमनेर में छत्रपति शिवाजी महाराज को घेर लिया , 3 दिन तक मावलों ने मुग़ल सेना का प्रतिकार किया 2000 मावळे इसमे मारे गए और सिधोजी निम्बालकर इस युद्ध मे शाहिद हुए. छत्रपति शिवाजी महाराज 500 मावळे लेकर वहा से निकल गए.
‌ऐसे ही अंगिनाद युद्ध हुए. अगर आपको ऐसे ही कुछ युध्द के बारेमे जानकारी चाहिये तो जरूर हमे कमैंट्स में बताए
‌कुछ लोगो का ये सवाल होता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने इतने कम युद्ध कैसे? छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने खुद के दम पर लगभग 370 किले जीते. किलो को जीतने के लिए उन्होंने गनिमी कावा को अपनाया. गनिमी कावा एक युद्ध नीति है ,जिसमे दुश्मन को पूर्व सूचना दिए बिना ही उसपे हमला किया जाता था. हर एक किला जितने के लिए उन्हें कई दिनों तक किले की पूरी जानकारी लेनी पड़ती, जैसे कि किलो की गुप्त जगा, गुप्त दरवाजा, किलेदार का दिनक्रम,सिपाहियों की जगह और ऐसीही बोहोत कुछ चीजें. युद्ध तो तब होता है जब दोनों सेना आमने सामने हो.
‌इसपे और एक सवाल ऐसा होता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने गनिमी कावा क्यों अपनाया, राजपूतो की तरह सामने आकर क्यों नही सभी युद्ध किये?
‌बचपन मे छत्रपति शिवाजी महाराज ने महाराणा प्रताप की बोहोत सी लड़ाई के बारेमे सुना था. राजपूत सच्चे योद्धा थे, एक राजपूत 10-10 दुश्मनो को मारते थे पर दुश्मन धोके से उनपर वार करता था. इसमे दूसरी बात ये है कि अगर दुश्मन भी सच्चे राजपूत की तरह लड़ते तो राजपूत ही जीतते. पर एक राजा के हारने की वजह से पूरा राज्य संकट में आ सकता है, इसीलिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने गनिमी कावा अपनाया. इसमे और एक बात ऐसी है कि मुग़ल युद्ध मे अपने उसूलो के पक्के नही थे. वो एक एक किले को हासिल करने के लिए 20-30 हजार की सेना लाते थे

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